हिन्दी के लोकप्रिय कवि गोपाल दास नीरज का रचना संसार बहुत व्यापक था। एक ओर जहां वह विशाल कविसम्मेलनों के मंच से हजारों की भीड़ को मंत्रमुग्ध करने की क्षमता रखते थे तो दूसरी ओर भारत की प्रमुख साहित्यिक और सामयिक पत्रिकाओं में उनकी कवितायें अक्सर प्रकाशित होती थीं।
डॉ विजय राणा के साथ इस अंतरंग बातचीत में नीरज अपनी कुछ ऐसी दार्शनिक कवितायें सुना रहे हैं जो उनके प्रशंसकों नहीं सुनी थीं ।
गोपाल दास नीरज महारविन्द के दर्शन से बहुत प्रभावित थे। अरविंद आश्रम की माँ उन्हे बहुत स्नेह करती थी और कम आयु ही उन्होने महर्षि अरविंद की कविताओं का अँग्रेजी से हिन्दी मे अनुवाद करना शुरू कर दिया था।
आरंभिक दिनों मे आचार्य राजीश भी नीरज जी से बहुत प्रभावित थे और उनकी कुछ पुस्तकों की प्रस्तावना भी गोपाल दास नीरज ने लिखी थी।
ये बातचीत उनकी लंदन यात्रा के दौरान 2005 में रेकॉर्ड की गयी थी।
गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ का जन्म 4 जनवरी 1925 को ब्रिटिश भारत के संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध, जिसे अब उत्तर प्रदेश के नाम से जाना जाता है, में इटावा जिले के ब्लॉक महेवा के निकट पुरावली गाँव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के यहाँ हुआ था।
मात्र 6 वर्ष की आयु में पिता गुजर गये। 1942 में एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। शुरुआत में इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की। लम्बी बेकारी के बाद दिल्ली जाकर सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी की। वहाँ से नौकरी छूट जाने पर कानपुर के डी०ए०वी कॉलेज में क्लर्की की। फिर बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कम्पनी में पाँच वर्ष तक टाइपिस्ट का काम किया। नौकरी करने के साथ प्राइवेट परीक्षाएँ देकर 1949 में इण्टरमीडिएट, 1951 में बी०ए० और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एम०ए० किया।
मेरठ कॉलेज ,मेरठ में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया. उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गये और मैरिस रोड जनकपुरी अलीगढ़ में स्थायी आवास बनाकर रहने लगे।
कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के चलते नीरज को बम्बई के फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में नई उमर की नई फसल के गीत लिखने का निमन्त्रण दिया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पहली ही फ़िल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे और देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा बेहद लोकप्रिय हुए जिसका परिणाम यह हुआ कि वे बम्बई में रहकर फ़िल्मों के लिये गीत लिखने लगे। फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा।
किन्तु बम्बई की ज़िन्दगी से भी उनका मन बहुत जल्द उचट गया और वे फिल्म नगरी को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आये।
पद्म भूषण से सम्मानित कवि, गीतकार गोपालदास ‘नीरज’ ने दिल्ली के एम्स में 19 जुलाई 2018 की शाम लगभग 8 बजे अन्तिम सांस ली।